जो लोग खुद से ज्यादा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हैं, वे अभावों में भी हमेशा संतुष्ट रहते हैं

शुक्रवार, 25 दिसंबर को क्रिसमस है। ये पर्व प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। ईसा मसीह के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें उन्होंने जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए हैं। यहां जानिए एक ऐसा ही प्रसंग...

एक कथा के अनुसार अनुसार प्रभु यीशु अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव से दूसरे गांव यात्रा करते रहते थे। यात्रा में वे अलग-अलग जगह रुकते और लोगों को उपदेश देते थे। एक दिन यात्रा के दौरान सभी शिष्य बहुत थक चुके थे, उन्हें भूख भी लग रही थी।

शिष्यों ने प्रभु यीशु से कहा कि हमें भूख लग रही है। हमें रुककर खाना खा लेना चाहिए। शिष्यों के कहने पर एक जगह पर ईसा मसीह रुके और खाना खाने के लिए कहा। शिष्यों ने देखा कि खाना बहुत कम है। जब ये बात उन्होंने प्रभु यीशु को बताई तो उन्होंने कहा कि जो कुछ भी है, वह सब मिल-बांटकर खा लो।

सभी शिष्यों ने एक साथ बैठकर खाना शुरू करने ही वाले थे, तभी वहां एक और भूखा व्यक्ति पहुंच गया। उसने भी प्रभु यीशु से खाना मांगा। यीशु ने उसे भी शिष्यों के साथ बैठकर खाने के लिए बोल दिया।

यीशु के कहने पर शिष्यों ने उस भूखे व्यक्ति को भी खाना दिया। सभी ने कुछ ही देर में खाना खा लिया। कम खाने के बाद भी सभी शिष्यों को संतुष्टि मिल गई, सभी की भूख शांत हो गई। शिष्य हैरान थे कि इतने कम खाने में सभी का पेट कैसे भर गया।

जब ये बात उन्होंने प्रभु यीशु को बताई तो उन्होंने कहा कि जो लोग खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं, वे अभावों में भी संतुष्ट रहते हैं। तुम सभी ने खुद से ज्यादा दूसरों की भूख के बारे में सोचा, इसी वजह से थोड़ा सा खाना भी तुम लोगों के लिए पर्याप्त हो गया। इस प्रसंग की सीख यही है कि हमें हर परिस्थिति में मिल-जुलकर ही रहना चाहिए।



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